जन-उल्लास का पर्व है दशहरा
भारत
उत्सवों,पर्वों,त्यौहारों और मेलों-ठेलों की संस्कृति वाला देश
है जिसमे उत्साह,उल्लास तथा सांस्कृतिक परम्पराओं का अद्भुद
संगम होता है। भारत के प्रमुख उत्सवों मे दशहरा पर्व का अपना विशेष महत्व है जिसमे
धार्मिकता के साथ–साथ ऐतिहासिकता और पराक्रम का भी समावेश है।हालांकि इस पर्व का
आयोजन कब से प्रारम्भ हुआ ठीक–ठीक तरीके से तो नहीं बतया जा सकता लेकिन इसके
सूत्रबीज व्रह्त्संहिता तथा कालिदास आदि के ग्रन्थों में प्रकारान्तर से ज्ञात
होते है। और यही वह त्यौहार है जिसमे राम-रावण का आख्यान घर- घर मे सुनाया जाता है
तथा बहुधा शहरों और गावों मे रामलीला अथवा धनुष यज्ञ के नाम से मंचित भी किया जाता
है।
दशहरा,अश्विन शुक्ल दशमी को जिसे विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है के दिन, पूरे देश मे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। वैसे तो दशहरा की उत्पत्ति
के संदर्भ मे मुख्य धार्मिक मान्यता यही है कि भगवान राम और उनकी भार्या सीता और
अनुज लक्ष्मण के चौदह वर्षीय वनवास के दौरान लंकाधिपति रावण द्वारा सीता के अपहरण
के फलस्वरूप हुये युद्ध मे राम के द्वारा रावण का वध और प्राप्त विजय का उल्लास ही
दशहरा है।अनुमान किया जा सकता है की विजय के उपरांत सैनिकों को स्वर्ण मुद्रायेँ
प्रदान की गई थी संभवतः उसी परंपरा मे आज
भी, देश के अनेक भागों में जिसमे हमारा महराष्ट्र भी
सम्मिलित है,रावण दहन के पश्चात वापस लौटते समय समी की
पत्तियाँ सोना पत्ती के रूप मे लोग आपस मे एक दूसरे को देते हैं।
इसके साथ ही यह भी मान्यता है कि रावण से युद्ध
के पूर्व भगवान राम ने युद्ध की देवी दुर्गा की नौ दिन तक आराधना की थी और दसवें
दिन उन्हे विजय प्राप्त हुई थी। यही कारण है की नौ दिनों तक देवी की आराधना का
पर्व नवरात्रि उत्साह एवं धार्मिक उल्लास के साथ मनाया जाता है और इसका समपन दसवें
दिन विजया (विजय की देवी) की आराधना के साथ
दशहरा सम्पन्न होता है इसीलिए इसे विजयादशमी भी कहा जाता है। यह भी एक
मान्यता है की इसी दिन देवी द्वारा महिषासुर नमक राक्षस का वध किया गया था इसलिए
भी इस पर्व को विजयादशमी कहा जाता है ।
इस
पर्व के अवसर पर देश के कुछ भागों में नये अन्नों की यज्ञ मे आहुति देने, द्वार पर धान की
हरी एवं अनपकी बालियों को टाँगने तथा गेहूँ आदि को कानों, मस्तक
रखने जैसी परम्पराएँ प्रचलित हैं अत: कतिपय विद्वानो के अनुसार यह कृषि का उत्सव
है। और कुछ लोगों के अनुसार यह युद्ध पर जाने की तैयारी का प्रतीक है, क्योंकि दशहरा वह समय होता है
वर्षा ऋतु खत्म हो जाती है, नदियों की चाल धीमी हो जाती है, धन -धान्य आदि संग्रह
होता था तथा राजा लोग अस्त्र-शस्त्र को तैयार कर, अपराजिता
देवी की पूजा कर युद्ध के लिए प्रस्थान करते थे। इसी लिए इस दिन देश भर मे अस्त्र –शस्त्रों
की पूजा भी की जाती है। इसीलिए कहा जा सकता है की दशहरा एक बहुमुखी त्यौहार है
जिसे राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाता है।
दशहरा
की लोकप्रियता के पीछे मूल रूप से रामयण वर्णित
राम-रावण का कथानक है जो जो समाज को बुराई पर अच्छाई की जीत का दर्शन सिखाता है और यह हजारों वर्षों से पीढ़ी
दर पीढ़ी ना केवल अनुप्राणित हो रहा है बल्कि यह कथानक वर्षों से इतिहासकारों तथा
पुरातत्ववेत्ताओं के मध्य ऐतिहासिक विमर्श का भी केंद्र बना हुआ है जिसके संदर्भ
मे अनेक प्रकार के प्रमाण दिये जाते हैं।
देश
मे रामायण से संबन्धित अनेक स्थलों की पहचान की गई है जिसमे नाशिक स्थित पंचवटी भी
विख्यात है और रामयण के आख्यान के अनुसार सीता हरण रावण ने यहीं से किया था। यहाँ
यह भी उल्लेखनीय है की देश के अनेक
प्राचीन देवालयों मे भी उक्त घटनाओं को प्रदर्शित करती अनेक दृश्य/प्रतिमाएँ भी
प्राप्त होती हैं जिनकी तिथि प्रारम्भिक तिथि छठी सदी ईस्वी से अनुमानित की जाती
है।
ये
कथानक हमारे महाराष्ट्र के एलोरा गुफा स्थित कैलाशनाथ मंदिर मे जहां पर मंदिर की
बाह्य भित्ति मे सम्पूर्ण रामयण का ही
उत्कीर्णन है।यह भी सुविख्यात है कि रावण भगवान शिव का अनन्य भक्त था
और उसने उन्हें प्रसन्न करने के लिये कैलाश-पर्वत तक को उठा लिया और इस प्रकार का
शिल्पांकन भारतीय कला में कैलाशोत्तोलन अथवा रावण अनुग्रह के नाम से विख्यात
है जिसका अंकन भी ऐलोरा की कैलाश गुफा सहित छत्तीसगढ़ के
जांजगीर-चांपा जिले के खरौद नामक कस्बे में स्थित लखनेश्वर मंदिर में भी प्राप्त
होता है। इसी
प्रकार के कतिपय शिल्पांकन औरंगाबाद–अहमदनगर रोड पर स्थित सिद्धेश्वर मंदिर,कायगांव टोका मे भी प्राप्त होते हैं।
इस
प्रकार हम देखते हैं की दशहरा पर्व धार्मिक मान्यताओं के साथ ही साहस,पराक्रम,विजयों और मर्यादाओं के अनुपालन का उत्सव
है। जिसमे आराधना, उपासना के साथ त्याग की भावना तथा प्राचीन
परम्पराओं से जुड़ाव है जिसके चलते भारत का मैसूर,कुल्लू तथा
बस्तर मे आयोजित होनेवाला दशहरा उत्सव भारत की सीमाओं को लांघकर अंतराष्ट्रीय स्तर
पर अपनी पहचान बना चुका है। और इन सभी दशहरा उत्सवों की अपनी क्षेत्रीय विशेषताएँ
हैं जिसमे सभी लोग बिना किसी भेद-भाव के सम्मिलित होतें हैं और इस प्रकार यह पर्व
जन-उल्लास का प्रतीक बन जाता है ।
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