Sunday, July 7, 2019


फिर विवादों में ताज ....

          दूधिया संगमरमर से निर्मित और विश्वधरोहर का दर्जा प्राप्त ताज याने की ताजमहल का विवादों से पुराना नाता रहा है। सत्रहवीं सदी से ही कभी इसके निर्माण पर हुये भारी-भरकम खर्च को लेकर तो कभी इसे बनाने वाले मजदूरों के हाथ काटने  को लेकर और कभी इसको तोड़कर इसका संगमरमर नीलाम करने को लेकर विवाद उठने लगे थे।यही नहीं शायद कम ही लोगों को पता होगा कि ताजमहल को तीन बार बेंचा भी जा चुका है और यह कारनामा मशहूर ठग नटवारलाल ने किया था। खैर! तब से लेकर आज तक दुनिया की इस बेहतरीन इमारत से कोई न कोई विवाद जुड़ता रहता है।अभी हाल ही में पुनः ताज को लेकर खबरिया चैनलों का बाजार गरम है।
वर्तमान विवाद की शुरुआत उत्तर-प्रदेश सरकार द्वारा जारी की गई पर्यटन पर केन्द्रित एक बुकलेट में ताजमहल को स्थान ना मिलने से हुई थी और अंततः यह राजनीतिक बयानबाजी का विषय बन गया। यद्यपि इसके पूर्व भी ताज का विवादों से नाता रहा है जिसमें सन 2014 में उत्तर प्रदेश सरकार  द्वारा भी अधिपत्य सम्बन्धी दावा पेश किया गया था जो काफी चर्चा में रहा था। इसके अतिरिक्त समय –समय पर इसे शिया–सुन्नी वक्फ बोर्डों को सौंपने की भी मांग की जाती रही है। इसकी पृष्ठभूमि में तथ्य यह है कि शाहजहाँ का तालुक सुन्नी और मुमताज़  का ताल्लुक शिया मुस्लिम संप्रदाय से था ।
 राजनीतिक टीका –टिप्पणियों के चलते यदा-कदा ताज पर विवाद तो होते रहे हैं लेकिन सबसे ज्यादा विवाद एवं चर्चा इतिहासकर प्रो. पुरुषोत्तम नागेश ओक (पी.एन.ओक) द्वारा लिखित द ट्रू स्टोरी ऑफ ताज से हुआ जिसमें उन्होंने शाहजहाँ के दरबारी लेखक मुल्ला हामिद लाहौरी कृत ‘’बादशाह-नामा’’ के अनुसार मुगल बादशाह शाहजहां ने कुछ जमीन राजा जयसिंह से प्राप्त की थी आदि  तथ्यों/तर्कों के आधार पर उसे तेजोमहालय शिवाला अर्थात शिव मंदिर प्रमाणित करने का प्रयास किया है। इसके लिए उन्होने ताज पर उत्कीर्ण अनेक हिन्दू धार्मिक चिन्हो का उदाहरण दिया है और यह भी कहा कि ईरानी या मुगल परंपरा में किसी मकबरे को महलनहीं पुकारा जाता फिर इसका नामकरण  ताज-महल क्यों किया गया है। उनके अनुसार वस्तुतः यह तेजोमहालय नामक शिव मंदिर है, जिसका संक्षिप्त रूप ताज-महल हो गया है।
  इन्ही तथ्यों के आधार पर कुछ लोगों ने  केंद्रीय सूचना आयोग (सीआइसी) का भी दरवाजा खटखटाया था जिसके चलते  केंद्रीय सूचना आयोग (सीआइसी) ने भी सरकार के केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय/भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से यह स्पष्ट करने को कहा है कि यह ऐतिहासिक इमारत शाहजहां का बनवाया हुआ मकबरा है या यह शिव मंदिर है, जिसे राजपूत राजा जयसिंह ने मुगल बादशाह को उपहार में दिया था? इस सवाल की जड़ में भी इतिहासकार पी.एन.ओक का वह दावा है जिसके मुताबिक यह एक हिंदू इमारत है। हालांकि यहाँ यह भी उल्लेखनीय है की स्वयं पी.एन.ओक की ताजमहल सम्बन्धी याचिका सत्रह वर्ष पूर्व मा.उच्चतम न्यायालय खारिज कर चुका है।
     हालांकि ! उपरोक्त धारणाओं और तथ्यों के बारे में ताजमहल की देख–रेख करने वाली केंद्र सरकार के संगठन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अनुसार उसके पास इस तरह के कोई दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं है। वस्तुत: ताजमहल भारत सरकार द्वारा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अंतर्गत राष्ट्रीय महत्व का संरक्षित स्मारक घोषित है, जिसे किसी भी बोर्ड को नहीं सौंपा जा सकता। ताज की देख-रेख और संरक्षण का पूरा जिम्मा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का है। हालांकि इस इमारत से जुड़े जो मजहबी रिवाज हैं, उन्हें निभाने में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण मौलवियों को वांछित सहयोग अवश्य प्रदान करता है।
पूरी दुनिया में प्रेम की शानदार मिसाल तथा बेजोड़ कलास्थापत्य वाले ताज के मान्य इतिहास के रूप में यह स्वीकार किया जाता है कि ताजमहल को शाहजहां ने अपनी सर्वाधिक प्रिय अर्जुमंद बानो बेगम (1593-1631) जो कि मुमताज़ महल के नाम से अधिक प्रसिद्ध हैं, की याद में बनवाया था और अनुमानित है कि उनके नाम पर ही ताजमहल नामकरण किया गया था। दरअसल,शाहजहां की 14वीं संतान को जन्म देते समय मुमताज का निधन हो गया था और उनकी याद में ही शाहजहां ने ताजमहल बनवाया।शाहजहाँ के दरबारी लेखक मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी ने अपने "बादशाह-नामा" में मुग़ल शासक शाहजहाँ का सम्पूर्ण वृतांत 1000 से ज़्यादा पन्नों में लिखा है,जिसमें इस बात का जिक्र है कि, मुमताज की  मृत्यु के बाद, उन्हे मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में अस्थाई तौर पर दफना दिया गया था और इसके 6 माह बाद, अकबराबाद (आगरा) लाकर पुनः दफन किया गया।
ताजमहल के निर्माण की शुरुआत 1631 में की गई और1648 में अर्थात 17 वर्षों मे यह पूर्ण हो सका। इसके निर्माण में लगभग 32 करोड़ रुपये उस समय खर्च हुये थे और इसके निर्माण में उत्तर भारत के करीब 20 हजार मजदूरों ने काम किया। मुगल चारबाग शैली मे निर्मित यह दुनिया का शानदार मकबरा है जिसका   मुख्य गुंबद 60 फीट ऊंचा तथा 80 फीट चौड़ा है।इस इमारत की नींव में विशेष प्रकार की लकड़ी के लट्ठों का प्रयोग किया गया है जो की नमी को अवशोषित करते हैं जिससे यमुना नदी के किनारे पर स्थित होने के बावजूद यह आज भी सुद्रढ है। इसके अतिरिक्त एक रोचक तथ्य यह भी है की ताजमहल की ऊंचाई कुतुबमीनार से भी ज्यादा है,जहां कुतुबमीनार की ऊंचाई 239फीट है वहीं ताजमहल की ऊंचाई 242फीट है।इसके निर्माण मे प्रयुक्त श्वेत संगमरमर मकराना (राजस्थान) से तथा अर्धकीमती पत्थर श्रीलंका तथा अफगानिस्तान आदि से मंगाए गए थे।
यदि विवादों को दरकिनार भी कर दिया जाय तो ताज की नैसर्गिक सुंदरता, कला एवं स्थापत्य इसे विश्व में भारतीय कला के अद्भुत प्रतिमान के रूप में  स्थापित करती है और इसी लिए यूनेस्को ने इसे 1983 में ही भारत का पहला विश्वधरोहर स्मारक घोषित कर दिया था, शायद इसीलिए इसे पूरी दुनिया शिद्दत के साथ कहती है ‘’ वाह ताज ’’ 



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