संस्कृति की संवाहक महिलाएं
प्रतिवर्ष
पूरी दुनिया मे 8 मार्च को विश्व महिला दिवस मनाया जाता है किन्तु हमारी भरतीय संस्कृति मे नारी का
सम्मान हमेशा सर्वोच्च प्राथमिकता पर रहा है और वैसे भी स्त्री,नारी,महिला और माँ ये कुछ ऐसे शब्द हैं जिनके बिना
दुनिया की मानव सभ्यता का इतिहास अधूरा है। और मानव जाति ही क्यों देवताओं का भी
वर्णन अधूरा ही रहता है क्यों कि देवियों के बिना देवताओं का अस्तित्व ही अपूर्ण होता
है। और इसी लिए भारतीय परिदृश्य मे
देवताओं के नामोल्लेख के
पूर्व देवियों का नाम अभिन्न रूप से जुड़ा
हुआ है जैसे–लक्ष्मीनारायण, सीताराम, राधाकृष्ण
तथा उमा-महेश्वर आदि। बल,बुद्धि और ऐश्वर्य की प्रदाता भी
देवियाँ ही है जिन्हें क्रमशः दुर्गा,सरस्वती और लक्ष्मी के
नाम से जाना जाता है।यही नहीं हमारे देश मे तो स्त्रियों की पूजा का विधान है और इससे
भी बढ़कर हमारे देश को ही माता का दर्जा दिया गया है और इसे भारत माता के नाम से
पुकारा जाता है।
सृष्टि
की उत्पत्ति के साथ ही महिलाओं महती भूमिका को देखते हुये उनको आदर एवं सम्मान उन्हे
प्रदान किया गया वह किसी अन्य को प्राप्त नहीं है। आज भी जब किसी घर मे बेटी का
जन्म होता है तो कहा जाता है कि लक्ष्मी आ गई ! आपने किसी बेटे के जन्म के समय ऐसा
सुना? यही नहीं अपाला,लोपामुद्रा जैसी महिलाओं को तो
वैदिक ऋषि का दर्जा प्राप्त है जिन्होने वेदों की ऋचाओं की रचना की। और वैसे भी
दुनिया के सारे महान पुरुष भी किसी न किसी माँ की ही संतान हैं और इसीलिए ईसा मसीह से पहले मदर मेरी को स्मरण
किया जाता है।
आपने अभी कुछ समय पूर्व टेलीविज़न
पर भारतीय क्रिकेट टीम का विज्ञापन देखा होगा जिसमे भारतीय क्रिकेटर धोनी ,कोहली और अन्य ड्रेसिंग रूम से
जब बाहर निकलते हैं तो उनकी जर्सी पर उनका नहीं उनकी माँ का नाम लिखा होता है।
आपने कभी सोचा है कि बेटों के नाम से पहले माँ का
नाम पहले लिखने की परंपरा कब से प्रारम्भ हुई। रोचक यह है कि हमारे पैठण
(प्राचीन प्रतिष्ठान) सातवाहन राजाओं की लगभग दो हजार साल पहले राजधानी हुआ करती
थी वहाँ के सातवाहन शासक गौतमीपुत्र सातकर्णी, वाशिष्ठीपुत्र पुलमावी तथा वाशिष्ठीपुत्र
सातकर्णी के नामो के पहले उनकी माताओं का नाम मिलता है। इसके आतिरिक्त भी हमारे
प्रदेश से ही मातोश्री जीजाबाई, पुण्यशलोका अहिल्याबाई,चांदबीबी, सावित्रीबाई फुले तथा डा. आनंदी गोपाल जोशी जैसे शसक्त महिलाओं के उदाहरण
ज्ञात होते हैं।
इसी प्रकार त्याग और बलिदान की सर्वोच्च गाथाएँ भी महिलाओं के खाते मे ही दर्ज हैं आपने कभी सोचा है कि प्रेम मे क्या कोई माँ अपने पुत्र के अतिरिक्त किसी
और के पुत्र को इतना प्रेम कर सकती है कि उसके लिए अपने ही सामने पुत्र का बलिदान कर दे शायद नहीं ! किन्तु भारतीय इतिहास
में पन्ना धाय द्वारा अपने स्वामी के पुत्र के प्राणों की रक्षा हेतु अपने ही बेटे को न्योछावर कर देने की रोंगटे खड़ी कर देने
वाली बलिदानी गाथा भी दर्ज है और ऐसी अद्भुत त्याग की मिसालें
कहीं और नहीं मिलती है।
उल्लेखनीय है कि दुनिया के अनेक
भागों मे मातृ-सत्तात्मक परिवेश दिखाई देता है जो कि महिलाओं को उच्चतम सम्मान
देने की परंपरा को प्रदर्शित करता है। वर्तमान परिवेश मे भी अनेक महिलाओं ने
पुरुषों की तुलना मे अधिक सफलताएँ अर्जित की हैं। यहाँ पर उद्देश्य तुलना का न
होकर स्त्रियों की अपरमित क्षमताओं का है जैसे आज देश की रक्षा मंत्री श्रीमति
निर्मला सीतरामन जी या फिर हाल ही मे तारिणी नामक छोटी नौका से पूरी दुनिया का
चक्कर लगाने वाली नौसेना की जाँबाज महिलाएँ तथा पेप्सीको की मुखिया रही इन्दिरा
नूई आदि। ये तो एक बानगी मात्र है इस प्रकार के अनेक उदाहरण हर क्षेत्र मे ना केवल
हमारे देश के साथ –साथ सम्पूर्ण विश्व मे मिल जाएंगे बल्कि हमारे आस-पास भी दिख
जायेंगे।
उपरोक्त तथ्यों से प्रमाणित होता
है की महिलाएं हर युग मे अपने कार्यों से संस्कृति की संवाहक रहीं है किन्तु मेरे
मन मे यह टीस हमेशा रहती है कि प्रतिवर्ष हम लोग विश्व महिला दिवस मनाते हैं और इस
वर्ष भी मनाएंगे किन्तु क्या आज भी महिलाओं को वास्तव में बराबरी का दर्जा प्राप्त
हुआ है?क्या उनके प्रति लैंगिक अपराधों मे कमी आई है? वस्तुतः सच्चे अर्थों मे
महिलाओं के लिए वही दिन विश्व महिला दिवस होगा जब उन्हे सभी क्षेत्रों मे समानता
का हक मिलेगा और उनका शोषण समाप्त होगा।
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