कठिन होता जा रहा है धरोहरों का संरक्षण
जब
पूरी दुनिया मे 18 अप्रैल को विश्व धरोहर दिवस आयोजित
करने की तैयारी की जा रही थी, उससे ठीक दो दिन पहले धरोहर प्रेमियों के लिए फ्रांस से एक दुखद खबर आई
की फ्रांस स्थित लगभग 850 साल पुराना नोमेड्स चर्च एक भीषण अग्निकांड मे जलकर
खाक हो गया। इसी प्रकार इराकी युद्ध के दौर मे भी बेबीलोनियन सभ्यता के महत्वपूर्ण अवशेष खत्म हो गए और बमियान की
बुद्ध मूर्ति को तो विस्फोट से ही उड़ा दिया गया था। आज सम्पूर्ण विश्व मे प्राचीन विरासतों को
सहेजना अत्यंत कठिन होता जा रहा और यह बात हर क्षेत्र मे लागू होती है चाहे विलुप्त
होती बोलियों की बात हो या समाप्ति के कगार पर पहुँच गई मानव प्रजातियो ,वनस्पतियों और बेजुबान जानवरों की
बात हो।
आज
स्मारकों के सामने सबसे बड़ा संकट आतंकों घटनाओं और युद्ध से भी ज्यादा शहरीकरण और विकास का है जिनकी चपेट मे अब तक
हजारों स्मारक आ चुके हैं जिनका कहीं भी कोई दस्तावेजी करण नहीं था।क्योकि विकास
के नाम पर हम धरोहरों को जान बूझकर नष्ट कर देते वह भी बिना वैकल्पिक उपाय अपनाए।
इसका एक उदाहरण शेरशाह सूरी द्वारा निर्मित कोस मीनार का दिया जा सकता है जो की अब
लगभग विलुप्त हिने की कगार पर हैं। ये वही ग्रांड ट्रंक रोड के निर्माता शेरशाह
सूरी थे जिनके द्वारा जारी किया गया रुपया हम आज भी उपयोग कर रहें है, उन्होने ही हर कोस पर एक–एक मीनार दूरी नापने के लिए बनवाई थी।ये तो
मात्र एक उदाहरण है जबकि अब तक नष्ट हो चुके लावारिस सरायों,
दरवाजो,गढ़ी,मंदिरों, मस्जिदों, गुफाओं ब्रिटिश बंगलों आदि जिनकी आज तक
गिनती भी नहीं की जा सकी है।
मोटे
तौर पर ये सारी धरोहरें अमूर्त (जिनहे स्पर्श नहीं किया जा सकता) और मूर्त (जिन्हे
स्पर्श किया जा सकता है) मे विभाजित हैं जिन्हे विश्व धरोहर का दर्जा प्रदान करने और
सदस्य देशों के लिए संरक्षण संबंधी नियम बनाने का एवं नियंत्रण का दायित्व यूनेस्को के पास है जिसके दुनिया के लगभग सभी देश सदस्य
हैं। पूर्वजों
से प्राप्त ऐसे
महत्वपूर्ण धारहोर स्थलों की पहचान एवं संरक्षण की पहल
संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनेस्को ने प्रारम्भ की थी बाद मे
जिसे एक अंतर्राष्ट्रीय
संधि जो कि विश्व सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर संरक्षण की बात करती है के
रूप मे सन 1972 में लागू किया गया तथा विश्व की
समस्त धरोहरों/स्थलों को मुख्यतः
तीन श्रेणियों प्राकृतिक सांस्कृतिक मिश्रित में सम्मिलित
किया गया।
विश्व धरोहर दिवस की
शुरुआत 18 अप्रैल 1982 को हुई थी जब आईकोमास संस्था ने
टयूनिशिया में अंतरराष्ट्रीय स्मारक और स्थल दिवस का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में
कहा गया कि विश्व भर में समान रूप से इस दिवस का आयोजन किया
जाना चाहिए। इस प्रस्ताव
को यूनेस्को के
महासम्मेलन में भी अनुमोदित कर दिया
गया और इस प्रकार नवम्बर 1983 से 18 अप्रैल को विश्व धरोहर दिवस के रूप में मनाने की
घोषणा कर दी गई। इसके पूर्व हर साल 18 अप्रैल को विश्व स्मारक और पुरातत्व स्थल दिवस के
रुप में मनाया जाता था।
हमारे देश मे विश्व धरोहर स्मारकों की कुल संख्या 35 है जिसमे 27 सांस्कृतिक स्थल तथा 07 प्राकृतिक पुरास्थल तथा 01 मिश्रित श्रेणी का है। इस दृष्टि से हमारा राज्य महाराष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र मे अत्यंत महत्वपूर्ण हैं जहां कुल चार, अजंता,एलोरा,एलीफेंटा गुफाएँ और क्षत्रपति शिवाजी टर्मिनस ( विक्टोरिया टर्मिनस) ,विश्व धरोहर का दर्जा प्राप्त कारीगरी के नायाब नमूने हैं। और यह भी महत्वपूर्ण है की सन 1983 मे देश मे सबसे पहले घोषित होने वाले विश्व धरोहर स्मारकों मे हमारे प्रदेश महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले मे स्थित अजंता एवं एलोरा भी शामिल था और संभवतः उस समय यह पहला अवसर था जब एक ही जिले मे दो स्थलों को विश्व विरासत का दर्जा प्राप्त हुआ हो।
प्रसंगवश
उल्लेखनीय है की इसी महीने अप्रैल मे जब अजंता की पुनः खोज के 200 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं तब हम सभी लोगो की
यह सामूहिक ज़िम्मेदारी है की विरासतों पर मंडरा रहे हर उस खतरे, को जिनसे उनको हानि पहुँच सकती है, को दूर करने के
लिए सारे प्रयास करें। ताकि हम उन्हे आने वाली पीढ़ियों को सौंप सके अन्यथा हमरे
मूक इतिहास की बोलती गवाही देने वाली ये विरासतें हमेशा के लिए खामोश हो जाएंगी।
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