Sunday, July 7, 2019


केसरी के बहाने दुनिया का महान युध्द सारागढ़ी पर्दे पर                                                                            

    अभी हॉल ही अक्षय कुमार अभिनीत  केसरी फ़िल्म जो दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण और अनोखे ऎतिहासिक युद्ध पर आधारित है जिसमें एक तरफ 21 सिख सैनिक  थे तो दूसरी तरफ 12000 अफगान कबीलाई लड़ाके। उल्लेखनीय यह है की  इस युध्द ने शौर्यता की ऐसी अद्भुत मिसाल गढ़ दी कि उसे दुनिया की श्रेष्ठतम एवं अद्भुत लड़ाईयों में गिना जाने लगा।

यह  सच्ची घटना ब्रिटिश भारत  के अंतर्गत स्थित नार्थ-वेस्ट फ़्रंटियर स्टेट (वर्तमान पाकिस्तान का खैबर पख्तूनवा क्षेत्र)की है जहाँ पर  लॉकहार्ट और गुलिस्तान किले स्थित थे और इन किलों से पहले सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण सारागढ़ी नमक  कबीलाई इलाके में एक सुरक्षा चौकी स्थित थी जो सारागढ़ी के नाम से ही जानी जाती थी। इन किलों का निर्माण महाराजा रंजीत सिंह द्वारा कराया गया था। वस्तुतः यह गढ़  ना होकर एक छोटा गढ़ थी जहां ब्रिटिश भारतीय सेना की 36 वीं सिक्ख रेजिमेंट के 21 जवान हवलदार ईशर सिँह गिल के नेतृतव में तैनात थे। इसकी विशेषता यह थी कि इस रेजिमेंट मे केव  साबत सूरत (जो केशधारी हों) सिख भर्ती किये जाते थे।

12 सितम्बर 1897 को लॉकहार्ट और गुलिस्तान किले पर कब्जा करने के उद्देश्य से बारह हजार अफगानों की बड़ी सेना ने कूच कर दिया। किन्तु उन किलों तक पहुँचने से पहले अग्रिम सुरक्षा चौकी सारागढ़ी स्थित थी। वहाँ हवलदार ईशर सिँह गिल के नेतृत्व मेँ तैनात इन 21 जवानोँ ने यह जानते हुये भी कि पहाड़ी इलाका होने के  कारण उन्हे लॉकहार्ट और गुलिस्तान किले से तत्काल मदद मिलना संभव नहीं है और 12 हजार अफगानोँ को हराना भी नामुमकिन है। फिर भी इन जवानोँ ने लड़ने का फैसला लिया और अविभाजित भारत की धरती पर एक ऐसा भीषण युद्ध लड़ा गया  जो दुनिया की महानतम युद्धों  मेँ शामिल हो गयाजहां एक ओर  12 हजार अफगान लड़ाके थे तो दूसरी ओर 21 भारतीय सिक्ख सैनिक थेजो कि पंजाब के माझा क्षेत्र के थे

इस भीषण युद्ध मे लगभग 2500 अफगान मारे गये (यद्यपि वास्तविक संख्या अलग-अलग स्रोतों मे भिन्न–भिन्न ज्ञात होती है) और उन्हे भारी नुकसान उठाना पड़ा। इस एक दिवसीय युद्ध मे हर जवान आखिरी सांस तक लड़ा और अफगानों की एक ही दिन मे शाम तक दोनों किलों पर कब्जा करने की कोशिश नाकाम हो गई।  और इन इक्कीस सिक्ख की जांबाजी ने उक्त दोनों किलोँ को बचा लिया। अफगानोँ की तो हार हुयी मगर सभी सिक्ख जवान शहीद हो गए।यह जानते हुये भी की जिंदा बचना मुश्किल है इसके बावजूद मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बाज़ी लगा देने की ऐसी मिसालें दुनिया मे कम ही मिलती हैं, यह उनमे से एक है ।

उधर जब ये खबर इंग्लैंड पहुंची तो पूरी  दुनिया स्तब्ध रह गयी ब्रिटेन की संसद ने इन 21 सिख बहादुर जवानों  को बहदुरी को खड़े होकर सम्मान दिया और सभी को जवानो को  मरणोपरांत इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट दिया गया। जो उस वक्त का सर्वोच्च वीरता पदक था और संभवतःआज के परमवीर चक्र के बराबर है। ऐसा माना जाता है की यह दुनिया की 10  महानतम लड़ाइयोँ मेँ शामिल है। इस लड़ाई की तुलना  स्पार्टन्स और पर्सिअन की लड़ाई से भी की जाती है  जिसमे 300 स्पार्टन्स ने 100000 की पर्सिअन सेना को अपने शहर मे घुसने से रोक दिया था।और इसी पर केन्द्रित हालीवुड एक अत्यंत प्रसिद्ध फिल्म 300 रुपहले पर्दे पर आई थी और इसके पीछे भी उद्देश्य यही था की लोग इसके बारे मे जाने।

अब जबकि सारागढ़ी युद्ध पर केन्द्रित केसरी फिल्मी पर्दे पर आई तो तो अचानक से इस  युद्ध  की भी चर्चा होने लगी।अगर वास्तविक रूप से देखें तो ये 21 जांबांज सिख जवान तो बहुदरी मे स्पार्टन्स से भी कहीं आगे निकल गए। अक्षय कुमार सहित सारे अनजान कलाकारों से सजी इस फिल्म मे सभी ने बेहतरीन अभिनय किया है और हर भारतीय को इस गौरवशाली,प्रेरक ऐतिहासिक लड़ाई से परिचित करने का काम किया है। यदि इसे उन 21बहादुर सिख सैनिकों को सच्ची श्रद्धांजलि भी कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी और हम सबको ऐसी सच्ची गाथाओं से परिचित भी होना चाहिए।

इन 21 सिक्ख बहादुर जवानो के  नाम इस प्रकार है -

हवलदार ईशर सिंह गिल (रेजिमेंटल नम्बर 165)
नायक लाल सिंह  (332)
नायक चंदा सिंह  (546)
लांस नायक सुंदर सिंह  (1321)
लांस नायक राम सिंह  (287)
लांस नायक उत्तर सिंह (492)
लांस नायक साहिब सिंह (182)
सिपाही हीरा सिंह (359)
सिपाही दया सिंह  (687)
सिपाही जीवन सिंह (760)
सिपाही भोला सिंह (791)
सिपाही गुरमुख सिंह (814)
सिपाही जीवन सिंह (871)
सिपाही गुरमुख सिंह  (1733)
सिपाही राम सिंह (163)
सिपाही भगवान सिंह (1257)
सिपाही भगवान सिंह (1265)
सिपाही बूटा सिंह  (1556)
सिपाही जीवन सिंह(1651)
सिपाही नन्द सिंह  (1221)



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