नीलाम होती भारतीय धरोहरें
अभी
कुछ दिनो पहले ही हैदराबाद के निज़ाम के आभूषणो की नीलामी की खबर मीडिया की
सुर्खियां बनी थी किन्तु ये पहली बार नहीं हो रहा है कि जब विदेशी नीलामघरों
द्वारा भारतीय धरोहरों की नीलामी की गई। इसके पूर्व भी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी
कि घड़ी एवं चश्मा तथा टीपू सुल्तान की तलवार आदि भी इसी प्रकार नीलाम की जा चुकी
हैं। हालांकि ये बहुमूल्य भारतीय ऐतिहासिक धरोहरें किस प्रकार नीलमघरों तक पहुँचती
है इसकी तहक़ीक़ात करना तो सरकारों का काम है किन्तु जब इस प्रकार की खबरें आती हैं
तो लोगों मे स्वाभाविक रूप से चिंता होती है और यही बात हमें अपनी धरोहरों के और
करीब ले जाती है।
ताजा
मामला, अमेरिका
के न्यूयॉर्क शहर में क्रिस्टी नीलामघर द्वारा 19 जून बुधवार को हुई, भारतीय
राजाओं/नवाबों के आभूषणों की नीलामी से जुड़ा है।
इस नीलामी में खास आकर्षण का केंद्र
रही हैदराबाद के आखिरी निज़ाम मीर उस्मान अली खान की बेहद खास अंगूठी
जो की “रिंग मिरर ऑफ पैराडाइज” के
नाम से प्रसिद्ध थी जिसमे गोलकुंडा की विश्व प्रसिद्ध हीरा खदान से निकला 52.58 कैरट का
हीरा जड़ा था। नीलामी में यह डॉयमंड रिंग 45 करोड़ रुपये मे
बिक गई।इसके
अतिरिक्त निज़ाम के खजाने का कभी खास हिस्सा रहा उनका 33 हीरों से बना हार 17 करोड़
रुपये मे तथा विभिन्न राजकीय समारोहों पर उपयोग मे आने वाली उनकी प्रिय तलवार भी 13.4 करोड़ रुपये में नीलाम हो
गई।
उपलब्ध
जानकारी के अनुसार वैसे तो इस पूरी नीलामी कुल 400 वस्तुएं थीं जिसमे कुछ
मुगलकालीन वस्तुएं, हुक्का तथा शाहजहाँ की कटार आदि, भी शामिल थी किन्तु सबकी नज़र
हैदराबाद के नवाब की नायाब चीजों पर थी। आजादी के पहले भारत की प्रमुख रियासतों मे
से एक हैदराबाद के निज़ाम कभी दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति के रूप मे प्रसिद्ध थे और
इनका खजाना पूरी दुनिया के लिए कौतूहल का विषय बना हुआ था। और आपको यह जान कर आश्चर्य होगा कि इस अकूत
खजाने के मालिक हैदराबाद के आखिरी निज़ाम मीर उस्मान अली को सन 1937 ई. (फरवरी माह) मे टाईम मैगजीन ने दुनिया का सबसे
अमीर व्यक्ति घोषित किया था ।
हैदराबाद के आखिरी निजाम का खजाना तो बाद मे भारत सरकार द्वारा धरोहर के रूप मे अधिगृहीत कर लिया गया और वर्तमान
मे रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के आधिपत्य मे है । इस खजाने को केवल तीन
बार ही प्रदर्शनी के लिए रखा गया
है। एक बार सन 2001मे राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली मे तथा फिर 2006 में निजाम के आभूषणो को सालार जंग म्यूजियम और पुनः अभी इसी
वर्ष राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली में कुछ समय के लिए प्रदर्शनी के रूप मे रखा गया था। और यह खजाना
मात्र खजाना नहीं है बल्कि इसमे सम्मिलित आभूषण,जवाहरात तथा अस्त्र-शस्त्र आदि भारतीय कला और तत्कालीन
इतिहास का भी प्रतिनिधित्व करते हैं।
किन्तु बात यहीं खत्म नहीं होती बल्कि ये तो खजाने
का वह हिस्सा है कि सभी को ज्ञात है इसके अतिरिक्त भी चोरी–चोरी,चुपके–चुपके खजाने के अनेक
महत्वपूर्ण गहने-जवाहरात, बेशकीमती अस्त्र-शस्त्र आदि दुनिया
के अनेक हिस्सों मे पहुँच गए और इनकी जानकारी हमे तब मिलती है जब ये किसी
अंतरराष्ट्रीय नीलामघर द्वारा बेंची जाती है। जैसे अभी हाल ही निज़ाम के कुछ
महत्वपूर्ण आभूषण आदि क्रिस्टी नीलामघर न्यूयार्क द्वारा नीलम किए गए।
न्यूयार्क स्थित नीलामी संस्था क्रिस्टी के
आधिकारिक बयान
मे
कहा गया कि भारतीय
कला और मुगल वस्तुओं की अब तक की सबसे बड़ी संख्या 400 वस्तुओं नीलामी की गई जिसमे लगभग 758 करोड़ रुपये प्राप्त
हुये। यद्यपि
इस प्रकार की नीलामियों को कानूनन किस
प्रकार रोका जा सकता है यह तो विधि विशेषज्ञ ही बता सकते हैं किन्तु वैश्विक धरोहर
सुरक्षा संबंधी कानूनों के अंतर्गत यदि किसी देश/संस्था/व्यक्ति का मालिकाना हक
प्रमाणित होता है और वह किसी अवैध तरीके से उस देश से लायी गई है तो उसे चुनौती दी
जा सकती है। हालांकि धरोहरों के नाम पर हो
रही इतिहास की इन नीलामियों पर भविष्य मे कभी प्रतिबंध संभव होगा की नहीं कहा नहीं
जा सकता परंतु उम्मीद तो की ही जा सकती है भविष्य मे सरकारें अवश्य समुचित कदम उठायेंगी।
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