Sunday, July 7, 2019


भारत, भारतीय रियासतें और सरदार पटेल

       जब-जब भारत की आजादी का इतिहास लिखा जाएगा तब-तब सरदार पटेल का नाम अवश्य लिया जाएगा क्योंकि आज हम भारत का जो भौगोलिक-राजनीतिक मानचित्र देखते हैं वह आजादी से पूर्व एवं तत्काल बाद वैसा नहीं था बल्कि वह अलग-अलग छोटी–बड़ी रियासतों के जमघट वाला मानचित्र था। बिखरी रियासतों को सूत्रबद्ध कर देश का निर्माण करना चुनौतीपूर्ण जटिल कार्य था और यही जटिल कार्य सरदार वल्लभभाईपटेल ने किया था जो देश के उपप्रधान मंत्री,गृहमंत्री और रियासती मामलों के प्रमुख थे और उनके इसी दृड़ निश्चयी कार्य के कारण उन्हे लौह पुरुष के नाम से भी जाना जाता है । 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाड मे जन्मे वल्लभ भाई पटेल को सरदार की उपाधि प्रसिद्ध बारदोली सत्याग्रह मे प्रभावी नेतृत्व करने के कारण वहाँ की महिलाओं ने प्रदान की थी ।
सन 1757 मे प्लासी के युद्ध के बाद से ही अंग्रेजों ने बांटो और राज करो की योजनाके तहत  विभिन्न समझौतों और संधियोंके अंतर्गत उन्हे अपने राज्य के भीतर क्षेत्रीय स्वायत्तता प्रदान कर अपना प्रभाव स्थापित कर रखा था। हर रियासत का अपना विधान,अपना निशान तथा स्वतंत्र शासक था और ऐसी स्वायत्तता प्राप्त रियासतों की संख्या 565 थी। इन रियासतों मे भी सबसे बड़ी रियासतें हैदराबाद तथा जम्मू-कश्मीर थी जिनका क्षेत्रफल ब्रिटेन से भी अधिक था एवं इनकी जनसंख्या कई यूरोपीय देशों से भी अधिक थी,इनकी अपनी सेनाएँ थी और हैदराबाद की तो अपनी वायुसेना भी थी तथा ये अपने–आप मे स्वतंत्र थीं।
सन 1945 मे द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से ही भारत के स्वतंत्र होने की सुगबुगाहट प्रारम्भ हो गई थी और अंततः ब्रिटिश सरकार ने 3 जून 1947 को  भारतीय स्वतन्त्रता अधिनियम पास कर दिया था जिसमे भारत के साथ- साथ पाकिस्तान के निर्माण की भी बात कही गई थी।और इसी संदर्भ मे तत्कालीन वायसराय लॉर्ड माउण्टबेटन को प. जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल ने स्पष्ट कर दिया था कि भारत अनेक हिस्सों मे विभाजित होकर स्वतंत्र ना हो। इसी अनुक्रम मे 25 जुलाई 1947 को लॉर्ड माउण्टबेटन ने प्रिंसेस ऑफ चेम्बर मे रियासतों के राजाओं को संबोधित करते हुए उनके सामने भारत या पाकिस्तान मे मिलने का प्रस्ताव रखा।
इसके बाद इन रियासतों के भारत मे विलय का कार्य प्रारम्भ हुआ जिसका दायित्व देश के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल को सौंपा गया था। इसके बाद लॉर्ड  माउंटबेटन के नेतृत्व में सभी रियासतों की बातचीत शुरू हुई। अनेक रियासतें तो स्वयं को स्वतंत्र देश घोषित करने की मांग करने लगी लेकिन सरदार पटेल की सूझ-बूझ के चलते स्वतन्त्रता की पूर्व संध्या तक पांच रियासतों को छोड़कर बाकी सभी ने भारत में विलय की सहमति प्रदान कर दी ।  भारत में विलय से इनकार करने वाली इन रियासतों मे त्रावणकोर, भोपाल, हैदराबाद, जोधपुर और जूनागढ़  की रियासतें थी जिनके बारे मे रोचक जानकारी उपलब्ध होती है।
भारत में विलय से इनकार करने वाली रियासतों मे सबसे पहली त्रावणकोर रियासत थी जहां से  बहुमूल्य खनिज प्राप्त होते थे। आधुनिक इतिहासकारों के अनुसार इन्ही सब के चलते रियासत के दीवान तथा वकील सर सी.पी. रामास्वामी अय्यर ने मोहम्मद अली जिन्ना तथा अंग्रेज़ अधिकारियों से मौखिक समझौता कर भारत मे विलय करने से इंकार कर दिया था। लेकिन बढ़ते जनाक्रोश और कूटनीतिक दबाव से आखिरकार सी.पी रामास्वामी अय्यर भारत मे विलय हेतु तैयार हो गए और 30 जुलाई 1947 को आखिरकार त्रावणकोर भारत का हिस्सा बन गया। इसी प्रकार भोपाल रियासत के नवाब हमीदुल्लाह खान ने मुस्लिम लीग के नेताओं से नजदीकी के चलते भोपाल को पाकिस्तान का हिस्सा बनाना चाहते थे, इसीलिए उन्होने अपनी रियासत का भारत में विलय करने से इनकार कर दिया था इसके कारण नवाब और भारत सरकार के बीच लंबे समय तक खींचतान चलती रही और भारत के आजाद होने के बाद भी भोपाल में भारत का राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहराया जाता था परंतु भौगोलिक स्थिति और जनता के दबाव से नवाब कामयाब नहीं हो सकाअंततः 1 जून 1949 को  भोपाल रियासत का भारत में विलय हो गया और इसी दिन पहली बार भारत का तिरंगा यहां फहराया गया 
उल्लेखनीय है कि जोधपुर रियासत के महाराजा हनवंत सिंह भी पाकिस्तान मे शामिल होना चाहते थे क्योंकि  मोहम्मद अली जिन्ना ने उन्हे कराची के बंदरगाह सौंपने का आश्वासन दिया था किन्तु पटेल साहब ने चतुरता के साथ उससे भी बड़ा प्रस्ताव और भारत में रहने के लाभ जब उन्हे बताए, फलस्वरूप जोधपुर आज भारत का हिस्सा है
किसी समय दुनिया की सबसे दौलतमंद और प्रभावशाली रियासतों में से एक रही हैदराबाद रियासत का  भारत के एक बड़े हिस्से पर भी शासन था। यहां के निजाम मीर उस्मान अली की इच्छा थी कि हैदराबाद ब्रिटिश कॉमनवेल्थ के तहत एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित हो। लेकिन माउंटबेटन के इंकार के बाद  जिन्ना खुलकर निजाम के समर्थन मे  आ गए थे। जब निज़ाम किसी प्रकार राजी नहीं हुये तो 13 सितंबर 1948 को भारतीय सेना ने  'ऑपरेशन पोलो' के तहत हैदराबाद को चार दिन के संघर्ष के बाद निजाम को पराजित कर हैदराबाद का भारत में विलय कर लिया ।
इसी प्रकार पाकिस्तान मे विलय हेतु सहमत 12 रियासतों के अतिरिक्त गुजरात स्थित  कठियावाड़ की जूनागढ़ रियासत ने भी हस्ताक्षर किए थे। इसके नवाब मोहम्मद महाबत खानजी तृतीय अपने दीवान सर शाह नवाज भुट्टो,जो की पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकर अली भुट्टो के पिता थे, के कहने पर पाकिस्तान में शामिल होने के लिए सहमत हो गए लेकिन जब  भारतीय नेताओं ने जूनागढ़ रियासत को लेकर सख्त रुख अख़्तियार किया तो  नवाब डरकर पाकिस्तान भाग गए किन्तु  सरदार वल्लभभाई पटेल के चलते अंततः जूनागढ़ भी 20 फरवरी 1948 जनमत संग्रह के माध्यम से भारत मे सम्मिलित हो गया।
सरदार वल्लभभाई पटेल ने बिखरी रियासतों को एक कर भारत के निर्माण मे अप्रतिम योगदान दिया और यही कारण है कि आज भारत के लगभग सभी प्रदेशों के किसानो से एकत्रित लोहदान के आधार पर दुनिया की सबसे बड़ी और ऊंची धातु प्रतिमा स्टेच्यु ऑफ यूनिटी निर्मित की गई जो कि अमेरिका मे स्थित स्टेच्यु ऑफ लिबर्टी से लगभग दुगुनी (182 मी.) ऊंची है। यह प्रतिमा एक छोटे चट्टानी द्वीप पर जो साधुबेट(राजपीपला के समीप) में सरदार सरोवर बांध के सामने नर्मदा नदी के बीच स्थित है जिसके निर्माण मे 24,500 मीट्रिक टन लोहा,1700 मीट्रिक टन कांस्य, 70,000 मीट्रिक टन सीमेंट तथा 250 अभियंताओं एवं 3700 मजदूरों का अथक परिश्रम सम्मिलित है। इस प्रकार निर्मित इस एकता की प्रतिमा स्मारक स्थल का राष्ट्र को लोकार्पण सरदार पटेल के योगदान को ना केवल अविस्मरणीय बना देगा बल्कि आजादी की कहानी को पुनः सिंहावलोकन करने का अवसर पूरी दुनिया से आने वाले पर्यटकों को प्रदान करेगा।

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