Sunday, July 7, 2019


मौखिक इतिहास लेखन का सशक्त  उदाहरण है पद्मावत

         पद्मावत नामक महकाव्य के रचयिता मलिक मुहम्मद जायसी के जेहन मे भी कभी यह बात न आयी होगी की सन 1540 ई. मे उनके द्वरा लिखित यह ग्रंथ  आधुनिक भारत मे बड़ी बहस का मुद्दा बनेगा। और यह मौका पद्मावती नामक बनने वाली फिल्म से पैदा हुआ है।  वस्तुतः पद्मावत चित्तौड़ के रावल रतनसिंह की अनिंद्य सुंदरी भार्या रानी पद्मिनी पर केद्रित काव्य ग्रंथ है। जायसी के अनुसार दिल्ली के सुल्तान अलाऊद्दीन खिलजी ने पद्मिनी की सुंदरता का बखान  सुनकर उसने 1303 ई. मे चित्तौड़ पर  घेरा डाल  दिया था परिणाम स्वरूप राजा की पराजय निकट देखकर पद्मिनी सहित सैकड़ो राजपूत नारियों ने तत्कालीन परंपरानुसार स्वयम  अग्निकुंड मे कूदकर आत्मोसर्ग कर जौहर कर लिया था । पद्मावत मे इसी घटना को  चौपाई/काव्य के रूप मे लिखा गया है।

जबसे संजय लीला भंसाली प्रसंग हुआ है तब से देश के इतिहासकारों मे घमासान मचा हुआ है। “ख़ज़ाइन उल फतुह” एवं “तारीख अफ़ग़ातीन सलाना”  जैसे  तत्कालीन फारसी,अरबी और राजपूत शासकों  से सम्बद्ध  अभिलेखों  मे  में  पद्मिनी का जिक्र नहीं होने से मध्यकालीन इतिहासकार इसे कपोल-कल्पित कथा निरूपित कर रहें है।   कतिपय स्थापित इतिहासकार  तो चूंकि पद्मावत  की रचना ही युद्ध के 237 वर्ष बाद हुई है इसी आधार पर इसकी वास्तविकता  पर प्रश्नचिन्ह  खड़ा करते हैं ।

पद्मावती की ऐतिहासिकता के पक्ष एवं विपक्ष मे अनेक तर्क दिये जा सकते हैं और इस पर पृथक से चर्चा की जा सकती है किन्तु यहाँ पर उद्देश्य यह है की  मौखिक इतिहास लेखन पर भी उसी प्रकार विचार करना चाहिए। उत्तर  से लेकर दक्षिण भारत तक ऐसे असंख्य किस्से, कहावतें,कवित्त,दोहे,चौपाई और कहानियाँ भरीं पड़ी हैं जिनमे इतिहास की झलक दिखाई देती है।  हाँ, यह अवश्य है की चारण-भाट परंपरा के चलते इनमे महिमा-मंडन  ज्यादा है लेकिन उन्हे  पूर्णतः नकारा नहीं जा सकता।  किन्तु राजस्थान विशेषकर राजपूताने के इतिहास का समग्र विवेचन बिना रासों,चारण–भाट के किस्सों और गाथाओं के अधूरा ही रहेगा। बिना कवि चंदबरदाई और प्रथ्वीराजरासों के उल्लेख के बिना क्या पराक्रमी पृथ्वीराज चौहान का  जिक्र हो सकता है? हाँ ,यह इतिहासकार का दायित्व है वह तथ्यों का संकलन सावधानी से करे।
 
आजादी के बाद से ही भारतीय इतिहास मुखर तरीके से  धाराओं बंटा  दिखाई देता है और उन धाराओं मे हमेशा परस्पर द्वंद भी होता रहा है। किन्तु इन दावो और प्रतिदावों  मे भारतीय इतिहासलेखन की एक मजबूत परंतु अल्पविकसित विधा जिसे मौखिक इतिहास लेखन के रूप मे जाना जाता है ओझल होने लगती है। आपने लोकप्रिय कहावत “कहाँ राजा भोज  कहाँ गंगू  तेली तो सुनी होगी” इसमे सुप्रसिद्ध परमार शासक राजा भोज और चालुक्य शासक गांगेय देव तेलप की ऐतिहासिक घटना जुड़ी हुई है। भारतीय श्रुत परंपरा आज भी पूरी दुनिया के सामने बुद्धिमत्ता और स्मरण शक्ति का आज भी जीवंत प्रमाण है और  वेदों और उपनिषदों का संचयन तो इसी मौखिक परंपरा के आधार पर ही किया गया है। अनेक बार इतिहास मे ऐसी घटनाएँ होती हैं जिनका जिक्र दस्तावेजो मे नहीं होता है लेकिन जनमानस मे ये गहरा प्रभाव छोड़ती हैं तथा  वे हमेशा किस्सों,कहानियों और स्म्रतियों मे सुरक्षित रहती हैं तथा कालांतर मे ये किसी न किसी माध्यम से से स्फुटित होती हैं ।

इसी प्रकार  प्राचीन इतिहास से संबन्धित एक संस्कृत  नाटक “देवीचंद्रगुप्तम” का जिक्र यहाँ  आवश्यक और प्रासंगिक  लगता है  जिसमे गुप्त  साम्राज्य  के  निर्बल शासक रामगुप्त द्वारा किए गए लज्जाजनक कृत्यों और चन्द्रगुप्त जो की उसका लघु भ्राता था,द्वरा पुनः साम्राज्य  को स्थापित  करने की जानकारी मिलती है। जब इस नाटक की चर्चा होती थी तब भी कतिपय इतिहासकर रामगुप्त की ऐतिहासिकता पर ही संदेह करते थे क्योंकि आईएस नाटक के कुछ अंश ही प्राप्त हुए थे और यह पहली बार बीसवीं सदी के प्रारम्भिक चरण मे ही चर्चा मे आया था । किन्तु जब विदिशा (म. प्र.)  से रामगुप्त के सिक्के प्राप्त हो गए तब इतिहासकारों को भी इस पर भी यकीन करना पड़ा । जोधाबाई का उदाहरण भी सबके सामने है मध्यकालीन इतिहासकर इस किरदार के अस्तित्व पर ही संशय करते हैं लेकिन जोधाबाई का वास्तविक महल सीकरी  मे अवश्य है  ठीक इसी प्रकार पद्मावत पूर्णतः ऐतिहासिक ग्रंथ तो नहीं है लेकिन वह वास्तविक घटना पर अवश्य आधारित है। वैसे राजपूताने से सम्बद्ध रानियों के नाम सामान्यतःबहुज्ञात नहीं है। और रूपवती स्त्रियों को उपमाओं से भी संबोधित करने का अनुमान किया जा सकता है और पद्मिनी /पद्मावती नाम इसी संदर्भ मे अनुमानित किया जाना चाहिए मात्र नाम के आधार पर किसी तथ्य को नकारने के स्थान  पर सबल तथ्यों पर विचार करना चाहिए।

संभव है की अपने मूल स्वरूप मे यह घटना किसी अन्य स्वरूप मे रही हों बाद मे इनमे क्षेपक आदि जुड़ गयें हों किन्तु खिलजी के  साथ रतनसिह सन 1303 ई.  मे  युद्ध हुआ था यह ऐतिहासिक तथ्य है। जिसमे राजपूतों की पराजय के डर से सैकड़ों  वीरांगनाओं  ने जौहर कर अपनी चारित्रिक दृढ़ता  का परिचय दिया था। इस प्रकार  पद्मावत  भारतीय मौखिक इतिहास लेखन  की परम्परा का परिचायक महाकाव्य  है और इसमे वर्णित पद्मावती भारतीय नारी का प्रतिनिधित्व करती है अतः इसे मात्र आख्यान या अफसाना मानकर नकारा नहीं जा सकता।



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