Sunday, July 7, 2019


बिनेई माशे- आ अब लौट चलें
           हजारो बरस किसी देश में अधिवास के पश्चात् जब किसी समुदाय को यह ज्ञात हो कि उसका मूल स्थान कोई अन्य देश है तो यह अत्यन्त कौतूहल पूर्ण लगता है। आश्चर्य तब और ज्यादा होता है कि वह अन्य देश भी उस तथ्य को स्वीकार कर विदेश में रहने वाले अपने विलुप्त होते समुदाय को बचाए रखने के लिए बकायदा कानून बनाकर चरणबद्ध तरीके से उसे वापस लाने की न केवल तैयारी करता है। बल्कि सारी औपचारिकताएं पूर्ण कर उनमें से कई सौ लोगों को अपने यहां बुलाकार बसा भी लेता है।
       उपरोक्त बाते सुनने में शायद अविश्सनीय लगती हो किन्तु भारत के उत्तरपूर्वी राज्यों, मिजोरम-मणिपुर के कतिपय जन-जातीय समूहों पर किया गया दावा कि वे इजरायल के विलुप्त हो चुके कबीलों में से एक बिनेईमाशे के वंशज है, पर लगभग सहमति बन चुकी है। वैसे तो उत्तरपूर्व स्थित म्यामांर की सीमा से सटे इन दो राज्यों के इजरायली पूर्वजों का दावा है कि हजारों वर्ष पूर्व जब असीरियनों ने उन्हे निर्वासित कर दिया था तब वे घुमन्तू रूप से यहां पहुॅचे थे। कालान्तर में ये लोग एनिमिस्ट हो गए तथा बाद में ब्रिटिश लोगों के प्रभाव से इनमें से कई ईसाई धर्मावलम्बी हो गए।
सन् 2005 में अध्ययन के आधार पर इजरायल के मुख्य रब्बी ने यह दावा किया था  कि भारत के उत्तरपूर्वी राज्यों मिजोरम-मणिपुर के सीमावर्ती क्षेत्रों में निवास करने वाला जनजातीय समूह इजरायली यहूदियों के विलुप्त हो चुके प्राचीन कबिलों में से एक बिनेईमाशे  है। यद्यपि यह चौकानेवाला तथ्य अवश्य लगता है किन्तु वैज्ञानिक अध्ययनों के बाद स्वयं पूरी दुनिया में यहूदियों के एकमात्र देश इजरायल ने भी इसे अधिकारिक रूप से स्वीकार किया है।
       इजरायल ही एक मात्र ऐसा देश है जिसकी पूरे विश्व में यहूदी समुदाय के संरक्षक के रूप में विशिष्ट भूमिका है। इसके साथ ही उसने सारे यहूदी नागरिकों को इजरायल में अपनी धरती पर आकर बसने का आमंत्रण भी दे रखा है। इजरायली यहूदियों के प्राचीन विलुप्त कबीलों में से एक बिनेई माशे जिसकी विश्व में कुल आबादी लगभग 7000 है जिसमें से 5000 लोग भारत के उत्तरपूर्वी राज्य मिजोरम-मणिपुर में है तथा शेष इजरायल एवं अन्य स्थानों पर है। बिनेईमाशे का हिब्रू में अर्थ मिनाशे का पुत्र होता है। बिनेईमाशे से संबंधित मानव शास्त्रीय समूह मिजो, कूकी तथा चिन-पीपुल के नाम से जाने जाते है। जिनकी भाषा थाडो, मिजो तथा हिब्रू है।
       सन् 1978 में जब बाईबिल का भारत के उत्तरपूर्व राज्यो की स्थानीय भाषा में अनुवाद हुआ तो तब इन लोगो ने उसका अध्ययन किया और जाना कि उनकी जीवन शैली तथा उपासना पद्धति तो इजरायली यहूदियों के विलुप्त बिनेईमाशे कबीले से अद्भुत साम्य रखती है। कालान्तर में इजरायली यहूदियों के संपर्क में आने के पश्चात् इस दिशा में और प्रयास हुए और अन्ततः इन उत्तरपूर्वी जन-जातियों को विलुप्त बिनेईमाशे कबीले के वंशज के रूप में स्वीकार किया गया जो कि कभी यायावरी करता हुआ भारत के उत्तरपूर्वी राज्य में पहुंचा था।
       इजरायली घर वापसी अभियान के तहत इन लोगों को इजरायल में बसने का आमंत्रण दिया गया और अंततः पहला जत्था इजरायल में जाकर बस चुका है। इजरायल ने इन लोगों की वापसी की चरणबद्ध योजना तैयार की है। अभी कुछ माह पूर्व (अक्टूबर, 2013) में इजरायली सरकार ने पुनः 899 से अधिक बिनेईमाशे को भारत से इजरायल लाने की मंजूरी प्रदान की है और इस समुदाय के दो हजार लोग पूर्व में ही इजरायल जाकर बस चुके है।
       चंूकि भारत में आकर बसने पर इनके अपने रिति-रिवाज लगभग विलुप्त हो गए थे और वे लोग उत्तरपूर्वी जनजातिय लोगो के अनुसार रच बस गए थे। किन्तु कुछ चीजे कभी नहीं बदलती है जिसके कारण इन की मूल कड़ी पहचान में आ गई। अब इन्हे फिर से इनके मूल कबिले के रूप में दीक्षित-प्रशिक्षित किया जा रहा है जिससे कि वे इजरायल जाकर अपने मूल कबिले में जाकर घुल मिल सके। और इस पूरी जानकारी को देखकर बर्बस ये पंक्तियां याद आती है कि आ अब लौट चलें।


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