औरंगाबाद और विश्व धरोहर की राहें
विश्व धरोहर सप्ताह / विश्व धरोहर दिवस के आयोजन
के अवसर पर विश्व धरोहर स्मारकों की चर्चा
अवश्य होती है और इसी क्रम मे औरंगाबाद के विश्व धरोहर शहर घोषित होने की चर्चा भी
कहीं-कहीं सुनाई देती है। औरंगाबाद के संदर्भ मे यह तब और भी महत्वपूर्ण हो जाता
है जब स्वयं मुख्यमंत्री महोदय ने औरंगाबाद मे आयोजित मंत्रिमण्डल की विशेष बैठक
में ऐतिहासिक औरंगाबाद शहर को हेरिटेज सिटी घोषित करने हेतु यूनेस्को को प्रस्ताव
भेजने घोषणा की थी और हाल ही मे इसके लिये महाराष्ट्र शासन द्वारा विशेषज्ञ/
एजेंसी के चयन हेतु प्रस्ताव आमंत्रित कर प्रक्रिया भी प्रारम्भ कर दी गई है ।
किसी
भी शहर को विश्व विरासत का तमगा मिलना अपने आप में हर्ष और गर्व का विषय होता है | विश्व में ऐसे अनेक प्राचीन शहर हैं जो अपनी प्राचीनता के साथ साथ
मौलिकता को अक्षुण्ण बनाए हुये आज भी विद्यमान हैं और उन शहरों की ये ख़्वाहिश रहती
है कि वे भी विश्व धरोहर की सूची मे सम्मिलित हों | अभी
पिछले वर्ष 2017 मे ही भारत के एकमात्र ऐतिहासिक शहर अहमदाबाद को विश्व विरासत
घोषित का गौरव प्राप्त हुआ है जो कि एशिया महाद्वीप का तीसरा शहर है। इसके पहले
भक्तपुर (नेपाल) एवं गाले (श्रीलंका) इस सूची मे सम्मिलित हो चुके हैं | आइये जानने की कोशिश करते हैं कि यह प्रक्रिया कैसे पूरी होती है-
पूरी
दुनिया में किसी शहर अथवा स्मारक को विश्व विरासत अथवा विश्व दाय घोषित करने का
कार्य संयुक्त राष्ट्र का शैक्षणिक, वैज्ञानिक एवं
सांस्कृतिक संगठन जिसे संक्षिप्त में यूनेस्को कहा जाता है करता है | पूरी दुनिया में 167 देशों की मात्र 1092 विरासतें हीं विश्व धरोहर का
दर्जा प्राप्त हैं जिनमे 845 सांस्कृतिक, 209 प्राकृतिक तथा
38 मिश्रित श्रेणी की हैं | वर्तमान में हमारे देश में कुल
37 विश्व धरोहर स्मारक/स्थल यूनेस्को द्वारा घोषित किए गए हैं जिनमे 29 सांस्कृतिक, 07 प्राकृतिक तथा 01 मिश्रित श्रेणी की हैं | भारत
में सबसे पहले विश्व धरोहर स्मारक घोषित होने वाले स्मारकों में औरंगाबाद जिले में स्थित अजंता-एलोरा भी सम्मिलित है इसके
अतिरिक्त एलीफेंटा गुफाएँ,छत्रपति शिवाजी टर्मिनस और पश्चिमी
घाट भी अन्य उदाहरण हैं|
वैसे
तो हर साल विश्व विरासत स्मारक घोषित किए जाते हैं किन्तु इसकी एक निश्चित
प्रक्रिया है जिनका पालन करना यूनेस्को के सभी सदस्य देशों के लिए अनिवार्य होता
है | सामान्यत: हमारे देश में किसी भी विरासत को चिन्हित कर यूनेस्को में
नामांकन का कार्य भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत स्थापित विशेष
प्रकोष्ठ एवं भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के माध्यम से किया जाता है | सबसे पहले पूर्व से गठित
समितियों द्वारा क्षेत्रवार इस प्रकार की विरासतों की पहचान के लिए राज्य सरकार के
पुरातत्व विभागों/ सांस्कृतिक उपक्रमों से प्रस्ताव आमंत्रित किए जाते हैं तथा
विशेषज्ञों के सामने उनका प्रस्तुतीकरण होता है उसके पश्चात केंद्रीय स्तर पर
स्थापित समिति राष्ट्रीय स्तर पर विरासत को यूनेस्को में नामांकन करने के प्रस्ताव
को हरी झंडी देती है फिर विशेषज्ञों का समूह नामांकन डॉजियर बनाने का कार्य करता
है |
यह नामांकन डॉजियर ही सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज़ होता है
जिसके मूल्यांकन के आधार पर यूनेस्को निर्णय लेता है कि उक्त स्मारक के अंतिम
नामांकन के लिए चयन किया जाना चाहिए अथवा नहीं | उक्त
नामांकन डॉजियर के तैयार होने के बाद केंद्र सरकार यूनेस्को के समक्ष उक्त
प्रस्ताव को विश्व विरासत घोषित करने हेतु प्रस्तुत करती है | यदि उक्त नामांकन स्वीकार किया
जाता है तो उक्त स्मारक, प्रस्तुतकर्ता देश की प्रारम्भिक
सूची में शामिल किया जाता है| भारत द्वारा यूनेस्को में इस प्रकार के लगभग 41 प्रस्ताव यूनेस्को की
प्रारम्भिक सूची में विश्व विरासत का दर्जा पाने की प्रत्याशा में लंबित हैं |
हाँ, रोचक बात यह है कि दुनिया का प्रत्येक देश चाहे वह छोटा हो या बड़ा
प्रत्येक वर्ष सामान्यत: एक ही प्रस्तुत कर सकता है |
प्रस्तुत होने वाले किसी भी प्रस्ताव का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा उस शहर अथवा
स्मारक की यूनिवर्सल वैल्यू अर्थात वैश्विक महत्व तथा ऑथाण्टिकेशन अथवा मौलिकता
होती है | इसके
अतिरिक्त समय समय पर होने वाले बदलावों, संरक्षण, स्वामित्व, अतिक्रमण, तथा
विधिक समेत अनेक मुद्दों का निराकरण भी
सम्मिलित होता है | कुल मिलाकर यह एक लंबी प्रक्रिया
होती है जिसमे कम से कम तीन-पाँच वर्ष का समय लगता है और उक्त सारे मानदंडों पर
खरा उतरने के पश्चात यूनेस्को के अंतर्राष्ट्रीय
विषय विशेषज्ञों के समूह एवं संगठन जिनमे आईकोमास/आई यू सी एन आदि सम्मिलित
होते हैं जो स्वयं उक्त स्थान पर जाकर
वस्तुस्थिति का आकलन करते हैं और
उस से संतुष्ट होने के पश्चात यूनेस्को द्वारा अंतिम रूप से विश्व धरोहर/विरासत का
दर्जा प्रदान किया जाता है |
इस
प्रकार यह एक लंबी और जटिल प्रक्रिया होती है जिसमे विश्व विरासत घोषित होने के
लिए प्रस्तावित स्मारक / शहर को यूनेस्को द्वारा निर्धारित मानकों पर खरा उतरना
होता है और औरंगाबाद के लिये यही सबसे बड़ी चुनौती होगी। हालांकि स्मार्ट सिटी
प्रोजेक्ट के तहत भी औरंगाबाद महानगरपालिका शहर के ऐतिहासिक महत्व को ध्यान मे
रखकर संबन्धित विभागों से चर्चा कर अपनी योजनाएँ यूनेस्को के मानको के अनुसार कार्यान्वित कर सकती है
जिससे की विश्व विरासत घोषित होने की प्रक्रिया को बल मिल सके किन्तु इसके लिए
शासन के विशेष प्रयासों के साथ-साथ तकनीकी विशेषज्ञों की भी आवश्यकता होगी क्योंकि
“दिल्ली” जैसा ऐतिहासिक राजधानी शहर अभी भी विश्वविरासत घोषित होने के लिए
जद्दोजहद कर रहा है |
(
Thanks for sharing such great information
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