Wednesday, February 13, 2013

वेलेण्टाइन डे बनाम भारतीय प्रेम

इतिहासगत अनेक मत-मतान्तर के बावजूद यह स्वीकार किया जाता है कि रोमन सन्त वेलेण्टाइन ने, तीसरी शताब्दी ई. में रोम के शासक क्लाउडियस द्वितीय द्वारा प्रेमीयुगलों के विवाह आदि पर प्रतिबन्ध लगाए जाने के बावजूद भी उन्हें शरण दी थी, उनकी रक्षा की थी। फलस्वरूप उन्हें मृत्युदण्ड दिया गया। कालान्तर में उनके इस बलिदान को स्मरण करने के लिए उनके नाम पर वेलेण्टाइन डे मनाया जाने लगा। पश्चिम से आयातित और वर्तमान में लगभग पूरी दुनिया में प्रेम दिवस के रूप में धूम मचाने वाले इस त्यौहार का यही संक्षिप्त इतिहास है।

आज से दो दशक पूर्व वेलेन्टाइन डे की आहट भारत में सुनाई दी फिर धीरे-धीरे प्रचार माध्यमों ने इसे प्रसारित किया। बाजार ने इस अवसर पर विशेष रियायतें घोषित की, कतिपय चैनलों ने वेलेन्टाइन डे की कहानियां तथा विशिष्ट प्रेम संदेशों की पटि्‌टयां चलाये जाने का कार्य प्रारंभ कर दिया, और उन पर भी इनामी राशि, गिफ्ट वाउचर आदि दिए जाने लगे। होटलों, रेस्टोरेंट में वेलेन्टाइन शामें आयोजित होने लगी और तो और कुछ अखबारों ने भी इस अवसर को भुनाने या यूं कहे अति आधुनिक दिखने के प्रयास में वेलेन्टाइन डे पर प्रेम संदेशों का प्रकाशन ही शुरू कर दिया। बाजार और प्रचार-प्रसार के गठजोड़ ने वेलेन्टाइन डे का ऐसा आभा मण्डल निर्मित कर दिया कि पश्चिम जैसी स्वच्छन्दता की आकांक्षा के चलते वेलेण्टाइन डे को शहरी युवा वर्ग ने हाथों-हाथ लिया और कुछ ही समय में इसका अखिल भारतीय नगरीय संस्करण तैयार हो गया। किन्तु इस स्वच्छन्दता ने परम्परागत भारतीय संस्कारों एवं शालीनता की सीमाओं को तिरोहित कर दिया। और इस दिवस पर रेस्तराओं, समुद्र तटों तथा उद्यानों में प्रेम का सार्वजनिक उन्मुक्त प्रदर्शन शुरू हो गया। वेलेण्टाइन डे के आयोजन से ज्यादा उसमें आ रही विकृतियों, विशेषकर स्वच्छंदता के नाम पर उच्‍छृंखलता के कारण इसका विरोध करने वाला एक वर्ग भी खड़ा हो गया। किन्तु विरोध के इन स्वरों ने इसको और अधिक प्रचार-प्रसार का अवसर उपलब्ध करा दिया। सबसे रोचक तथ्य तो यह है कि यह बयार शहरों तक ही सीमित नहीं रही बल्कि अब तो कस्बानुमा गांवों में भी लुका छिपी वाले वेलेन्टाइन डे मनाए जाने लगे हैं।

वेलेण्टाइन डे प्रेम को अभिव्यक्त करने का एकमात्र दिवस है ऐसा नहीं है, बसंतोत्सव तथा मदनोत्सव जैसे पारम्परिक त्यौहार भी प्रेम को समर्पित त्यौहार हैं। किन्तु भारतीय परिप्रेक्ष्य में प्रेम का क्षितिज इससे कहीं व्यापक दिखाई देता है। भारतीय प्रेम समर्पण की कहानी है, बलिदान की गाथा है और त्याग का समुच्चय है। जब हम इतिहास की तारीखों को पलटते हैं तो उसमें प्रेम की ऐसी अनुपम घटनाएं दर्ज मिलती है जिनका कहीं और मिलना मुश्किल है। हमारे यहां सावित्री इसी प्रेम के चलते यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस ले आती है। राजा नल और दमयन्ती की प्रेम कहानी पर आज भी ढेरों लोकगीत मिल जाते है। सम्राट दुष्यन्त और शकुन्तला के प्रेम पर बेजोड़ महाकाव्य अभिज्ञान शाकुन्तलम की रचना कर कालिदास विश्व साहित्य में अमर हो जाते हैं। यह उदाहरण तो एक बानगी मात्र हैं। हमारे इतिहास में ऐसी अनगिनत घटनाएं है जो भारतीय प्रेम को एक ऐसे उच्चतम शिखर पर स्थापित करती है जो कि प्रेम का एक मानक बिन्दु बन जाता है।

मुगल सुल्तान शाहजहां अपनी प्रिय रानी की याद में ताजमहल जैसी नायाब इमारत तामीर करा देते हैं। जो दुनिया के सात अजूबों में से एक बन जाती है और आज भी प्रेम के शाश्वत प्रतीक के रूप में पूरी दुनिया उसका उदाहरण देती है। इसी प्रेम की वशीभूत हो मीरा भगवान कृष्ण से प्रेम करते-करते विषपान कर जाती है और इसे समर्पण की पराकाष्ठा ही कहेंगे कि वह विष भी अमृत में परिवर्तित हो जाता है। ग्वालियर नरेश मानसिंह तोमर गूजरी रानी मृगनयनी के लिए ग्वालियर दुर्ग में गूजरी महल जैसा रनिवास खड़ा कर देते है। माण्डू के सुल्तान बाजबहादुर अपनी प्रेयसी रानी रूपमती के प्रेम में बावरे होकर माण्डू में ऐसे बुर्ज का निर्माण कराते हैं जहां से वह प्रतिदिन मां नर्मदा के दर्शन करने के बाद ही अन्य कार्य करती थी। क्या कोई किसी और के पुत्र को इतना प्रेम कर सकता है? कि उसके लिए अपने पुत्र का बलिदान कर दे। शायद नहीं किन्तु भारतीय इतिहास में पन्ना धाय द्वारा अपने स्वामी के पुत्र की प्राणों की रक्षा हेतु अपने ही बेटे को न्योछावर कर देने की रोंगटे खड़ी कर देने वाली बलिदान गाथा भी दर्ज है।

कहने का तात्पर्य यह है कि बाजारीकरण एवं विदेशी संस्थागत राशि की आमद ने अलग-अलग अवसरों पर बाजार गढ़ने का जो स्वरूप तैयार किया है उसमें वेलेण्टाइन डे एक महत्वपूर्ण बाजार बनकर उभरा है और बाजारीकरण ने ना केवल भारतीय प्रेम की शाश्वत परिभाषा को बदलकर रख दिया बल्कि एक सन्त के बलिदान दिवस को चाकलेटी प्रेम के उन्मुक्त और स्वछन्द दिवस के रूप में बदल डाला।

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