आसान नहीं है विश्व धरोहर घोषित होना
किसी भी प्राचीन जीवंत शहर को विश्व विरासत का
तमगा मिलना अपने आप में गर्व और प्रसन्नता का विषय होता है | पूरी दुनिया में ऐसे अनेक प्राचीन शहर हैं जो अपनी प्राचीनता के साथ साथ
मौलिकता को अक्षुण्ण बनाए हुये आज भी विद्यमान हैं | दुनिया
के ऐसे चुनिन्दा शहरों में वेटिकन सिटी भी एक शहर है जो कि विश्व धरोहर सूची में
सम्मिलित है | उपलब्द्ध जानकारी के अनुसार भारत में अभी तक किसी भी शहर
को विश्व विरासत घोषित नहीं किया गया | यह अवश्य है की समय
समय पर ऐतिहासिक शहरों को विश्व विरासत का दर्जा देने की चर्चा अवश्य होती रहती है
लेकिन उसे अभी तक अमली जामा नहीं पहनाया
जा सका है | पूरी दुनिया में किसी शहर अथवा स्मारक को विश्व
विरासत अथवा विश्व दाय घोषित करने का कार्य संयुक्त राष्ट्र का शैक्षणिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन जिसे संक्षिप्त में यूनेस्को कहा
जाता है करता है |
पूरी दुनिया में मात्र 1052 विरासतें हीं
विश्व धरोहर का दर्जा प्राप्त हैं जिनमे 814 सांस्कृतिक, 203
प्राकृतिक तथा 35 मिश्रित श्रेणी की हैं | वर्तमान में हमारे
देश में कुल 35 विश्व धरोहर स्मारक/स्थल यूनेस्को द्वारा घोषित किए गए हैं | वर्ष 2016 भारत के स्मारकों के लिए अब तक का सबसे सफल वर्ष रहा जिसमें
नालंदा, ली कोरब्यूसर(चंडीगढ़) तथा कंचनजंघा राष्ट्रीय उद्यान
को विश्व धरोहर घोषित किया गया | भारत में सबसे पहले घोषित
होने वाले स्मारकों में हमारे अपने जिले में स्थित अजंता भी सम्मिलित है इसके
अतिरिक्त ताजमहल, एलोरा, और कुतुबमीनार
अन्य उदाहरण हैं | वैसे तो हर साल विश्व विरासत स्मारक घोषित
किए जाते हैं किन्तु इसकी एक निश्चित प्रक्रिया है जिनका पालन करना यूनेस्को के
सभी सदस्य देशों के लिए अनिवार्य होता है |
सामान्यत: हमारे
देश में किसी भी विरासत को चिन्हित कर यूनेस्को में नामांकन का कार्य भारत सरकार
के संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत स्थापित विशेष प्रकोष्ठ एवं भारतीय पुरातत्व
सर्वेक्षण के माध्यम से किया जाता है | सबसे पहले पूर्व से गठित समितियों द्वारा क्षेत्रवार इस प्रकार की
विरासतों की पहचान के लिए राज्य सरकार के पुरातत्व विभागों/ सांस्कृतिक उपक्रमों
से प्रस्ताव आमंत्रित किए जाते हैं तथा विशेषज्ञों के सामने उनका प्रस्तुतीकरण
होता है उसके पश्चात केंद्रीय स्तर पर स्थापित समिति राष्ट्रीय स्तर पर विरासत को
यूनेस्को में नामांकन करने के प्रस्ताव को हरी झंडी देती है | इसके विशेषज्ञों का समूह नामांकन डॉजियर बनाने का कार्य करता है | यह नामांकन डॉजियर हीं सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज़ होता है जिसके मूल्यांकन
के आधार पर यूनेस्को निर्णय लेता है कि उक्त स्मारक के अंतिम नामांकन के लिए चयन
किया जाना चाहिए अथवा नहीं | उक्त नामांकन डॉजियर के तैयार
होने के बाद केंद्र सरकार यूनेस्को के समक्ष उक्त प्रस्ताव को विश्व विरासत घोषित
करने हेतु प्रस्तुत करती है |
यदि उक्त नामांकन स्वीकार किया जाता है तो उक्त
स्मारक, प्रस्तुतकर्ता देश की प्रारम्भिक सूची में शामिल किया जाता है | भारत
द्वारा यूनेस्को में इस प्रकार के लगभग 41 प्रस्ताव यूनेस्को की प्रारम्भिक सूची
में विश्व विरासत का दर्जा पाने की प्रत्याशा में लंबित हैं | हाँ, रोचक बात यह है की दुनिया का प्रत्येक देश
चाहे वह छोटा हो या बड़ा प्रत्येक वर्ष सामान्यत: एक हीं प्रस्ताव प्रस्तुत कर सकता
है | प्रस्तुत होने वाले किसी भी प्रस्ताव का सबसे
महत्वपूर्ण हिस्सा उस शहर अथवा स्मारक की यूनिवर्सल वैल्यू अर्थात वैश्विक महत्व
तथा ऑथाण्टिकेशन अथवा मौलिकता होती है | इसके अतिरिक्त समय समय पर होने वाले बदलावों,
संरक्षण, स्वामित्व, अतिक्रमण, तथा विधिक समेत अनेक मुद्दों का निराकरण भी सम्मिलित होता है | कुल मिलाकर यह
एक लंबी प्रक्रिया होती है जिसमे कम से कम
तीन-पाँच वर्ष का समय लगता है और उक्त सारे मानदंडों पर खरा उतरने के पश्चात
यूनेस्को के अंतर्राष्ट्रीय विषय
विशेषज्ञों के समूह एवं संगठन जिनमे आईकोमास/आई यू सी एन आदि सम्मिलित होते हैं जो
स्वयं उक्त स्थान पर जाकर वस्तुस्थिति का
आकलन करते हैं और उस से संतुष्ट होने के
पश्चात यूनेस्को द्वारा अंतिम रूप से विश्व धरोहर/विरासत का दर्जा प्रदान किया
जाता है |
वैसे विश्व धरोहर स्मारक/शहर का दर्जा मिलने पर सीधे तौर पर तो यूनेस्को से कोई अनुदान अथवा
राशि प्राप्त नहीं होती लेकिन पर्यटन के माध्यम से उक्त स्मारक एवं शहर की एक
वैश्विक पहचान अवश्य निर्मित होती है और पर्यटन के माध्यम से राजस्व में बढ़ोतरी
होती है | अभी हाल हीं में औरंगाबाद मैं महाराष्ट्र शासन
द्वारा आयोजित मंत्रिमण्डल की विशेष बैठक में ऐतिहासिक औरंगाबाद शहर को हेरिटेज
सिटी घोषित करने हेतु यूनेस्को को प्रस्ताव भेजने पर सहमति बनी है जो कि ना केवल महाराष्ट्र बल्कि
पूरे देश के लिए गौरव का विषय है | हालांकि इसके लिए शासन के
विशेष प्रयासों के साथ-साथ तकनीकी विशेषज्ञों की भी आवश्यकता होगी क्योंकि
“दिल्ली” जैसा ऐतिहासिक राजधानी शहर अभी भी विश्वविरासत घोषित होने के लिए जद्दोजहद
कर रहा है |
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