पुनः चर्चा मे है शारदा पीठ
चुनावी गहमा-गहमी के
बीच एक बड़ी खबर ये आई की पाकिस्तान करतारपुर साहिब जैसा ही कारीडोर शारदापीठ मंदिर
की तीर्थयात्रा हेतु हिन्दू तीर्थ यात्रियों के लिए बनाने के लिए सहमत हो गया है।
तब से ही प्राचीन भारत का वर्तमान पाक अधिकृत काश्मीर मे स्थित यह महत्वपूर्ण सांस्कृतिक
केंद्र उत्सुकता एवं चर्चा का केंद्र बना हुआ है। यदि सबकुछ ठीक–ठाक रहा तो
कश्मीरी पंडितो के साथ-साथ अन्य हिन्दू धर्मावलम्बियों की भी लगभग पिछले 70 वर्षों
से शारदापीठ जाने के लिए गलियारा बनाने लंबित मांग पूरी हो जाएगी। वस्तुतः सन 1947
मे पाकिस्तान बन जाने के बाद शारदापीठ की
यात्रा कठिन या फिर यूं कहे कि बंद हो गई गई थी। शारदा पीठ भारतीय नियंत्रण रेखा पर भारत के कुपवाड़ा से तकरीबन 30 किमी दूर तथा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर स्थित मुज्फ़्फराबाद
से लगभग 145 किमी दूर नीलम नदी के किनारे शारदा गांव में स्थित है जहां पर अब मंदिर के नाम पर
सिर्फ भग्नावशेष ही बचे हैं ।
वैसे
तो इस मंदिर कोई क्रमबद्ध लिखित इतिहास तो ज्ञात नहीं होता कि यह मंदिर कब अस्तित्व में आया किन्तु परंपरानुसार ज्ञान की देवी सरस्वती के इस मंदिर को 5000 साल से भी अधिक पुराना माना जाता है है। लेकिन उपलब्ध प्रमाणो के अनुसार मौर्य सम्राट अशोक के शासनकाल के दौरान मंदिर के पास एक बौद्ध
विश्वविद्यालय का जिक्र मिलता है जो शारदा पीठ के रूप में जाना जाता था जिसका उद्देश्य बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार था।। और कतिपय विद्वानो ने तो यहीं पर चतुर्थ बौद्ध
संगीति के आयोजन का भी उल्लेख किया है। इसके
अतिरिक्त 11वीं सदी ई. में कश्मीर के इतिहास के सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्रोत
कल्हणकृत राजतरंगिणी (संस्कृत ग्रन्थ)तथा अकबर कालीन अबुलफजल द्वारा लिखी गई आइन-ए-अकबरी मे भी शारदा
मंदिर का महत्वपूर्ण विवरण मिलता है।वैसे भी कश्मीरी पंडितों के लिए शारदा पीठ मंदिर, अमरनाथ,क्षीरभावनी और अनंतनाग स्थित मार्तंड सूर्य मंदिर की तरह ही आस्था
केंद्र रहा है और अनेक कश्मीरी
पंडितों की तो यह कुलदेवी के रूप मे भी अधिष्ठित हैं।
शारदा पीठ का महत्व इसलिए भी है कि यह देवी के 52
शक्तिपीठों में ही नहीं, बल्कि 18 महाशक्तिपीठों में से एक माना जाता है जहां
पर सती देवी का दायाँ हाथ गिरा था। इसके
साथ ही इसकी गणना भारत के प्राचीन महत्वपूर्ण शिक्षा केन्द्रों, तक्षशिला, नालंदा,उज्जैन,वल्लभी, विक्रमशिला तथा
वाराणसी मे कि जाती थी। शारदा पीठ के महत्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है की शैव संप्रदाय के उन्नायक कहे जाने वाले शंकराचार्य और वैष्णव
संप्रदाय के प्रवर्तक रामानुजाचार्य दोनों ही यहां आए थे और उन्होने यहाँ से महत्वपूर्ण ज्ञानार्जन किया था। चौदहवीं शताब्दी ई. तक कई बार यह मंदिर प्राकृतिक आपदाओं तथा विदेशी आक्रमणों को झेलता रहा जिससे इसे काफी हानि पहुंची।
ज्ञात
जानकारी के अनुसार 19वीं सदी ई. में काश्मीर
के महाराजा गुलाब सिंह ने आखिरी बार इसका जीर्णोद्धार कराया था। बाद मे उपलब्ध
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार सन 2005 में आए भूकंप में यह मंदिर बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था किन्तु पाकिस्तान मे किसी ने इसकी ओर ध्यान नहीं दिया।परंतु अब ऐसा लगता है कि भारतीय
तीर्थयात्रियों के लिए शारदा पीठ यात्रा करने के लिए गलियारा बनने से इस प्राचीन
धरोहर के संरक्षण और संवर्धन की दिशा मे भी जिम्मेदार संस्थाएं ध्यान देंगी जिससे
शारदा पीठ के गौरवशाली अतीत से भी दुनिया
पुनः रूबरू हो सकेगी। हालांकि यह कहना तो जल्दबाज़ी होगी पर उम्मीद तो की ही जा
सकती की शायद इन्ही प्रयासों से भारत-पाकिस्तान के संबंध पुनः पटरी पर आ जायें।
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