अजंता गुफाओं की पुनःखोज के 200 वर्ष
हाँ,अप्रैल का ही
महीना था और साल था 1819, जब ब्रिटिश भारतीय सेना ककी मद्रास
रेजीमेंट के कैप्टन जॉन स्मिथ शिकार के दौरान अजंता की महान बौद्ध गुफाओं तक
पहुंचे और उसे पश्चिमी दुनिया के विद्वानो से परिचित कराया तथा समीप ही स्थित गाँव
अजंता (अजिंठा) के नाम पर इसका नामकरण अजंता कर । जबकि अजंता गुफाएँ वन ग्राम
लेनापुर की राजस्व सीमा मे स्थित हैं और वह अजिंठा की तुलना मे अधिक निकट है और स्थानीय
लोग तो इन गुफाओं को रंगित लेणी के नाम से ही जानते
हैं। उल्लेखनीय है की स्थानीय स्तर पर तो यह गुफाएँ
पूर्व से ही ज्ञात थी किन्तु कतिपय विद्वान गुफा क्रमांक 10 मे एक स्तम्भ
पर उत्कीर्ण कैप्टन जॉन स्मिथ के हस्ताक्षर के आधार पर उसे इसकी पुनः खोज का श्रेय
देते है जिसके संदर्भ मे और शोध की आवश्यकता है ।यदपि माह और वर्ष तो स्पष्ठ है
जबकि तिथि के संदर्भ मे कतिपय विद्वान इसे 18 अप्रैल और कतिपय 28 अप्रैल मानते हैं
। वैसे तो चीनी बौद्ध तीर्थ यात्री ह्वेन सांग
ने सातवीं सदी ईस्वी मे ही उक्त गुफाओं का
उल्लेख किया था किन्तु वे कभी इनका भ्रमण नहीं कर पाये थे। अनेक शताब्दियों तक
गुमनाम रहने के बाद पुनः इनकी खोज हुई और इस प्रकार आज अजंता की पुनः खोज के 200
वर्ष पूर्ण हो गए है।तब से लेकर आज तक लाखों पर्यटकों इतिहासकारों और
पुरातत्ववेत्ताओं के साथ–साथ विश्व के अनेक प्रमुख व्यक्तियों ने भी समय-समय पर इनका
भ्रमण किया है। अजंता की ये बौद्ध गुफाएं समुद्रतल से लगभा 430 मी.
ऊंचाई पर वाघोरा नदी के बाएँ तट पर स्थित हैं और यह औरंगाबाद से लगभग 106 किमी तथा
जलगांव से लगभग 60 किमी दूर स्थित हैं। आवागमन की दृष्टि जलगांव निकटतम रेवे जंक्शन
और औरंगाबाद निकटतम हवाई अड्डा है।
अजंता की गुफाएं वास्तुशिल्प एवं विशेषकर भित्ति चित्रकला का दुनिया मे अनुपम उदाहरण हैं जो भारत की समृद्ध प्राचीन चित्रकला की विरासत को विश्व-पटल पर प्रदर्शित करती हैं जिसे भारत सरकार ने सन 1951ईस्वी मे राष्ट्रीय महत्व का संरक्षित स्मारक
और सन 1983 मे यूनेस्को ने इसे विश्व विरासत स्थल(World Heritage Site) घोषित किया था। वर्तमान मे इन गुफाओं की देख-रेख केंद्र सरकार के अंतर्गत भारतीय
पुरातत्व सर्वेक्षण औरंगाबाद मण्डल द्वारा की जाती है।
ये गुफाएं घोड़े की नाल के आकार की खड़ी
चट्टान मे उत्खनित गई हैं, जहां नीचे वाघोरा नदी प्रवाहित है। यहाँ पर यह नदी लगभग
200 फुट की ऊंचाई से गिरती है, जिसके परिणामस्वरूप
झरने की एक श्रृंखला बनती है जिन्हे सप्तकुंड जहा जाता है । बारिश
के दिनो मे यह अपने पूरे उफान पर होता है और पर्यटकों के लिए यह एक अतिरिक्त
आकर्षण भी होता है।
अजंता
मे कुल 30 गुफाएँ है जो पैदल भ्रमण के क्रम मे क्रमांक 01 से लेकर 30 तक नामांकित
है और इनमे चित्रित कथानक भगवान बुद्ध के पूर्व जन्म से जुड़ी जातक कथाओं एवं उनकी
चर्याओं से संबन्धित हैं। उक्त गुफाओं मे 9,10,19,26 एवं 29 नंबर की गुफाएँ चैत्यगृह हैं और शेष संघाराम अथवा
विहार हैं जहां पर बौद्ध भिक्षु/ विद्यार्थी निवास करते थे तथा बौद्ध धर्म से
संबन्धित अध्ययन ,ध्यान आदि सीखते थे।इस प्रकार यह गुफा समूह एक
बौद्ध विद्यालय का भी कार्य करता था।
अजंता गुफा समूह मे बौद्ध धर्म के हीनयान (इसमे मूर्ति पूजा निषेध है) और
महायान(इसमे मूर्ति पूजा की जाती है) दोनों समप्रदायों से संबन्धित गुफाएँ निर्मित
की गई हैं।
अजंता की गुफाएँ दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर सातवीं शताब्दी तक उत्खनित/ निर्मित की गईं
और सभी गुफाएं भगवान बुद्ध को समर्पित
हैं। यहाँ
पर तत्कालीन उत्कृष्ट
वास्तुकला और कलात्मक चित्रों से गुफाओं
को सुसज्जित
किया गया है। पूरी दुनिया मे विख्यात अजन्ता की भित्ति
चित्रकला, तत्कालीन
सामाजिक संरचना को भी प्रदर्शित करती है। इनमे अप्रतिम सौंदर्यबोध को
प्रदर्शित करती राजाओं,व्यापारियों,राजदूतों,दासों पुरुषों,महिलाओं तथा फलों-फूलों, पक्षियों जानवरों की नयनाभिराम चित्र एवं मूर्तियां मानवीय कला के उच्चतम प्रतिमानो को दर्शाते हैं। इसके अतिरिक्त यक्ष‘,‘गंधर्व‘ किन्नर, अप्सरा‘ भारवाहक, मालाकार, चैत्य अलंकरण आदि भी आकर्षण का विषय हैं।
यद्यपि पहले यहाँ पर
खोदी गई सभी गुफाओं मे चित्र थे परंतु अब वर्तमान मे गुफा क्रमांक 1, 2, 16 और 17 ही कलात्मक
दृष्टि से
अत्यंत महत्वपूर्ण हैं जिनमे महाजनक जातक, षदंत जातक,विश्व प्रसिद्ध पद्मपाणि-वज्रपाणि,आदि के चित्र
भारतीय चित्रकारों द्वारा दुनिया को दी गई अद्भुद भेंट है जिनके सामने आधुनिक की दुनिया की कला भी बौनी साबित होती हैं।
अजंता
गुफाओं के चित्र टेम्पेरा
तकनीक का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण हैं जिसमे सबसे पहले गुफा के भीतर की
खुरदुरी गुफाओं की दीवारों को छेनी से तराशा गया गया उसके बाद दीवार पर मिट्टी, गौरंग और धान की भूसी,
जड़ों का मिश्रण लेपित
कर एक के उपर एक विभिन्न परतों का निर्माण किया गया है । एक
बार परत तयार हो जाने के बाद सूखी सतह पर चूने की
पतली परत की पेंटिंग कर
दी जाती थी, जब यह सूख जाती थी तो इस पर रेखांकन (outline)
किया जाता था और
जब रेखांकन तैयार हो जाते थे तो उनमे आवश्यकतानुसार अलग –अलग रंग भरे जाते थे
जिससे त्रिविमीय चित्र बनते थे। और ये रंग प्राकृतिक होते थे जिनके निर्माण मे
केवलिन, शंख-शीपी,
शीशा,लालगेरू,पीली
गेरू,लेपिस्लजुली आदि का प्रयोग किया जाता था ।
उपलब्ध तथ्यों के
अनुसार, गुफाओं को दो
अलग-अलग समूहों में उत्खनित किया गया था जिनमें कम से कम चार सौ
वर्षों का अंतर था। पहले समूह में निर्मित गुफाएँ , दूसरी सदी ईसा पूर्व की तथा दूसरे समूह की गुफाएँ वाकाटकों, गुप्त शासकों और दान-दाताओं द्वारा निर्मितकार्य
गया गया था। गुफा क्रमांक 16 एवं 17 के निर्माण क्रमशः वकाटक शासक हरिषेण (475-500 AD.) के महामंत्री वराहदेव तथा सामंत उपेंद्रगुप्त द्वरा करवाया गया था। इससे संबन्धित प्राचीन अभिलेख भी गुफाओं मे
उत्कीर्ण हैं।
अजंता की ये महान गुफाएँ न केवल बुद्ध के जीवन, बोधिसत्व और जातक
की घटनाओं को
प्रस्तुत कथानको के चित्र और मूर्तियाँ को प्रस्तुत करती हैं बल्कि ये उन अनाम
भारतीय स्थापतियों,चित्रकारों
और संरक्षकों को भी विश्वव्यापी बनाते हैं जिन्होने बिना किसी श्रेय की लालसा के
इन गुफाओं के निर्माण मे अपना जीवन समर्पित कर दिया। हाँ ! अजंता गुफाओं से संबन्धित
महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि हाल ही भारत सरकार द्वारा जारी की गई नई मुद्राओं मे
सबसे बड़ी मुद्रा 2000 रुपए के नोट पर अजंता के चित्रों को स्थान दिया गया है जिनके
माध्यम से अजंता के चित्र पूरी दुनिया मे भ्रमण कर रहे हैं।